चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) का गोरखधंधा: शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का नया चेहरा
गुना/ विकासखंड गुना, चांचौड़ा एवं बमोरी में हाल के दिनों में चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) के दुरुपयोग को लेकर शिक्षा विभाग के भीतर भारी चर्चा है। सूत्रों का कहना है कि इन इलाकों में सीसीएल स्वीकृति में हो रही गड़बड़ियों ने इसे एक कमाई का जरिया बना दिया है। शिक्षा विभाग से जुड़े कई घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों के खुलासे के बाद, यह एक और उदाहरण है कि कैसे सरकारी अवकाश नीतियों का गलत फायदा उठाया जा रहा है।
चाइल्ड केयर लीव: क्या है यह योजना?
चाइल्ड केयर लीव, जिसे सीसीएल के नाम से जाना जाता है, महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुविधा है। यह अवकाश उनकी बच्चों की देखभाल के लिए प्रदान किया जाता है, विशेषकर तब जब बच्चे छोटे होते हैं या किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होते हैं। सरकार ने यह योजना महिला कर्मचारियों को उनके पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में मदद के लिए लागू की थी। लेकिन, जैसे-जैसे इस अवकाश योजना का दायरा बढ़ा, इसके दुरुपयोग के मामलों की संख्या भी बढ़ने लगी।
गुना, चांचौड़ा और बमोरी में बढ़ती अवकाश स्वीकृति
सूत्रों के मुताबिक, गुना, चांचौड़ा और बमोरी के विकासखंडों में 2022-23 और 2023-24 के दौरान सीसीएल स्वीकृति में असामान्य बढ़ोतरी देखी गई है। सामान्यतया, यह अवकाश तब स्वीकृत किया जाता है जब कर्मचारी के बच्चे की उम्र 18 वर्ष से कम हो, या कोई गंभीर बीमारी हो। लेकिन, अब यह देखा जा रहा है कि इन शर्तों का पालन किए बिना ही अधिकारियों द्वारा सीसीएल स्वीकृति दी जा रही है।
गुना विकासखंड के महारानी लक्ष्मी बाई विद्यालय गुना संकुल में तो तृतीय संतान पर भी सीसीएल स्वीकृत किया गया है, जबकि यह नियमों के खिलाफ है। यह मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि किस तरह नियमों की अनदेखी करके अवकाश स्वीकृति की जा रही है।
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें
गुना, चांचौड़ा और बमोरी के स्कूलों में जिस तरह सीसीएल के मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि इसे एक संगठित तरीके से चलाया जा रहा है। स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच सांठ-गांठ से यह गोरखधंधा फल-फूल रहा है। सूत्र बताते हैं कि अवकाश के लिए लगाए गए दस्तावेजों में हेरफेर की जा रही है और झूठे प्रमाणपत्रों के आधार पर सीसीएल स्वीकृत किया जा रहा है।
इस मामले की जांच होनी चाहिए कि किन दस्तावेजों के आधार पर अवकाश स्वीकृत किया गया है और क्या उन दस्तावेजों में दिए गए तथ्यों का सत्यापन किया गया है या नहीं। नियमों के अनुसार, सीसीएल केवल उन्हीं परिस्थितियों में स्वीकृत किया जा सकता है जब संतान की उम्र 18 वर्ष से कम हो या गंभीर बीमारी का सामना कर रही हो। इसके अलावा, पर्यवेक्षण अवधि पूरी होने से पहले भी सीसीएल नहीं दी जा सकती।
सूचना के आधार पर हो रही हेराफेरी
कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां अधिकारियों ने अपनी सुविधा के हिसाब से सीसीएल स्वीकृति प्रदान की है। इन मामलों में नियमों का पालन नहीं किया गया और बिना उचित प्रमाणपत्रों के अवकाश दे दिया गया। यह स्पष्ट है कि चाइल्ड केयर लीव का स्वीकृति प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी है, जिसे ध्यानपूर्वक जांचा जाना आवश्यक है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि शिक्षा विभाग में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने इस पूरी प्रक्रिया को अपनी कमाई का जरिया (कमीशन खोरी) बना लिया है। सीसीएल के नाम पर चल रही इस धांधली से जहां एक ओर योग्य कर्मचारियों के अधिकारों का हनन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें भी मजबूत हो रही हैं।
जांच के महत्वपूर्ण बिंदु
इस पूरे मामले की जांच में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
1. अवकाश स्वीकृति प्रक्रिया की जांच*: सीसीएल के लिए किए गए आवेदनों के साथ प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच होनी चाहिए। क्या सभी दस्तावेजों का सही तरीके से सत्यापन हुआ? क्या आवेदक ने शासन द्वारा निर्धारित सभी नियमों का पालन किया?
2. प्रमाणपत्रों की प्रामाणिकता*: 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सीसीएल स्वीकृत करने के मामले में यह देखना जरूरी है कि संबंधित प्रमाणपत्र सही हैं या नहीं। क्या बच्चों की उम्र और उनकी स्थिति को प्रमाणित किया गया?
3. झूठे मामलों की पहचान*: ऐसे मामलों की पहचान करना आवश्यक है, जहां नियमों का उल्लंघन करके अवकाश स्वीकृत किया गया है। विशेष रूप से ऐसे प्रकरणों में जहां कोई गंभीर बीमारी या विशेष कारण न होते हुए भी सीसीएल दिया गया है।
4. सीसीएल के दुरुपयोग की रिपोर्टिंग*: यह भी देखा जाना चाहिए कि सीसीएल के दुरुपयोग की कितनी रिपोर्टें अब तक आई हैं और क्या उन पर किसी प्रकार की कार्रवाई की गई है या नहीं।
भ्रष्टाचार का बढ़ता दायरा
सीसीएल का यह दुरुपयोग शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की गंभीर स्थिति को उजागर करता है। यह केवल एक विभाग की समस्या नहीं है, बल्कि यह उन गहरे भ्रष्टाचारी संरचनाओं की ओर संकेत करता है, जो सरकारी योजनाओं और अवकाश नीतियों के नाम पर फल-फूल रही हैं। शिक्षा विभाग, जो देश के भविष्य को गढ़ने का काम करता है, वहां इस तरह की धांधली का होना बेहद गंभीर है।
अधिकारी और कर्मचारी मिलकर इस तरह के गोरखधंधे को चला रहे हैं, जिससे न केवल सरकार के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता और विश्वास को भी नुकसान पहुंच रहा है। अतः यह आवश्यक है कि इस तरह के मामलों की गहन जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
गुना, चांचौड़ा और बमोरी में चाइल्ड केयर लीव के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार के मामले शिक्षा विभाग के भीतर गहराई तक फैले भ्रष्टाचार की एक और कहानी को उजागर करते हैं। यह न केवल अवकाश नीतियों के दुरुपयोग की समस्या है, बल्कि यह एक बड़ी भ्रष्टाचारी संरचना का हिस्सा है, जिसे समय रहते रोका जाना चाहिए। सीसीएल जैसे महत्वपूर्ण अवकाश का इस तरह से दुरुपयोग न केवल सरकारी नियमों की अवहेलना है, बल्कि यह एक सामाजिक अपराध भी है, जिसे तुरंत रोकने की आवश्यकता है।
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